शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

प्रथम परिचय

श्री गणेशाय नमः ॥
भगवान को याद कर के हमने भी ये काम शुरू कर ही दिया। अब दूसरों की बातें कहाँ तक पढें। आज कल हर कोई ब्लॉग लिख रहा है, अमिताभ बच्चन भी शुरू हो गए, तो हाथ में खुजली हुई और लिखने लगे पोस्ट। पर हिन्दी में ही क्यों?? ये न तो यक्ष प्रश्न है, और न इसके सही जवाब पे कोई इनाम मिलने वाला है। तो सुनिए, कारण ये है के अपनी प्रकृति उत्तम नही है इसका भान तो पहले ही हो गया था । हिन्दी भाषी प्रदेश, हिन्दी माध्यम वाले स्कूल और हिन्दी प्रेमी परिवार के सान्निध्य में पलान पोषण से हिन्दी का पौधा अंकुरित होने। इस पौध को खाद पानी देने का काम हिन्दी प्रेमी मित्रों के 'कुसंग' ने पूरी जिम्मेदारी से निभाया तो रहीम के दोहे ने अपने सामने दम तोड़ दिया और इस चंदन के वृक्ष में हिन्दी रुपी सर्प का विष फाईनली व्याप्त हो गया, और इसी विष का परिणाम है ये पोस्ट। जय हो।
आजीविका के चक्कर में यहाँ वहाँ मुँह और झक मरते अंततः महान भारत के महानतम महानगर में आगमन हुआ। बात ५ साल पुरानी है। जिसने सचिन और अमिताभ को रोटी दी, क्या वो मुझे कुछ न देगा? इसी प्रश्न के उत्तर को पाने, करोड़ों की भीड़ में अपना भी योगदान देने, और माँबाप को ये दिलासा देने के लिए के जिस शहर ने १ करोड़ को रोटी दी, वो १ करोड़ १ को भी देता है, अपन भी मुँह उठा के चले आए। साथ में था माता पिता आशीर्वाद हिन्दी प्रेम और हाथ में थी कंप्यूटर साइंस की डिग्री।
बात शुरू हुई थी हिन्दी से पर ये मेरी जीवनी बनती चली जा रही है, अतः इसे यहाँ विराम देना आवश्यक है। इस विषय में बाद के पोस्टों में चर्चा की जायेगी।
तो बात करते हैं हिन्दी की। हिन्दी का कीडा तो बचपन में ही काट लिया था, स्कूल के दिनों में बोर्ड परीक्षाओं में हिन्दी में सर्वाधिक अंक पा के कही न कही ये कीडा और घुसता ही गया। खैर, मैं हिन्दी के सिवा कोई आप्शन सोच ही नही सकता था और अंग्रेजी में दिन रात बकर बकर के बावजूद इससे कभी भी भावनात्मक लगाव नही हो सका। ऐसा नही था के भाषा की प्रवीणता इस मार्ग में कंटक थी , किंतु ये बात तो इससे कही आगे की थी, जैसा मैंने कहा 'भावनात्मक लगाव'। एक बात और भी थी वो ये के जितनी सहजता से हिन्दी में बात भेजे में घुसती है ,अंग्रेजी के लिए इस कार्य को करना मेरे विषय में टेढी खीर था। इसके अलावा राष्ट्र प्रेम , हिन्दोस्तान में हिन्दी की फजीहत , अंग्रेजी को हर बात में हिन्दी के ऊपर दी जाने वाली तरजीह ( यहाँ तक के हिन्दी माध्यम विद्यालयों के छात्रों को अंग्रेजी माध्यम विद्यालय के छात्रों छात्रों की तुलना में हीन माने जाने की सर्वप्रचलित जन भावना) आदि कुछ कारण थे जो मेरे हिन्दी का चुनाव करने के कुछ स्वाभाविक कारण बने।
अपनी चिठ्ठाकारिता के लिए 'आजातशत्रु' नाम का चुनाव करना उस भावना से निश्चित ही प्रेरित नही था, जिसके भावना के आवेग में कई युगल अपने नवजातों के लिए हिन्दी डिक्शनरी खंगालते देखे जाते हैं, अथवा अपने मित्रो - सम्बन्धियों आदि के हिन्दी अथवा पौराणिक ज्ञान की परीक्षा लेते हैं। ये मुझे मेरे लिए लिए एक स्वाभाविक और उपयुक्त विकल्प लगा, जो उस समय तक लोगों की निगाह से बचा रहा जब मैंने इसे रजिस्टर करवा लिया।
खैर पहली पोस्ट के लिए इतना ही। शुभ हो।

7 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

आपका स्वागत है , नियमित लिखे सयमित लिखे .

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य
टिप्पणियां भी करें

जयंत श्रीवास्तव ने कहा…

achchha laga yeh jankar ki aap hindi premi hain . badhai ....

शशांक शुक्ला ने कहा…

चलिये स्वागत है

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

narayan narayan

Meraj Ahmad ने कहा…

स्वागत!
बहुत खूब
बधाई !आप का काम तो उच्चकोटि का है ही,संभावनायें असीम हैं।

http://samaysrijan.blogspot.com

http://swarsrijan.blogspot.com

आजातशत्रु ने कहा…

प्रथम पोस्ट पर कम (सच कहूं तो शून्य) टिप्पणियों की अपेक्षा लिए जब अपना ब्लॉग खोला तो पाया के हिंदी रसिकों और चिठ्ठा प्रवर्तकों के अनुराग ने मुझे टिप्पणियों के रूप में अनुग्रहीत किया है. जैसे परदेस में कोई अपने मोहल्ले का मिल जाये वैसी ही सुखद अनुभूति मुझे इन टिप्पणियों को देख कर हुई, के हाँ मैं इस चिठ्ठा जगत में मैं बेसहारा नहीं हूँ.

आप सभी को मेरा मान तथा आत्मविश्वास बढ़ने के लिए ह्रदय से अतिशय धन्यवाद्.
-आजातशत्रु