सोमवार, 16 नवंबर 2009

खजाना चिठ्ठाकारी का

प्रियजनों,
अपने
पिछले पोस्ट पर आई टिप्पणियों से ह्रदय गदगद हो उठा। आप सबको धन्यवाद। हिन्दी को इन्टरनेट पे अक्सर ढूंढते हुए हिन्दी न्यूज़ की वेब साईट भर से पाला पड़ता था। किंतु जब दिल मांगे मोर अबाउट हिन्दी तो फ़िर क्या कीजे। तब मेरी गूगल पे हिन्दी की सर्च कुछ और आगे बढ़ी, जो हिन्दी चिठ्ठा रुपी खजाने पे जा के ख़त्म हुई। ये घटना आज से ४-५ वर्ष पुरानी है। तब हिन्दी चिठ्ठाकारी का शैशव काल चल रहा था, ये खजाना इतना समृद्ध नही था,और तत्कालीन चिठ्ठों में प्रयोग का दौर जारी था, और तब लेखों उतनी मच्योरिटी की अपेक्षा करना ग़लत था। किंतु सारे घटनाक्रम से अनभिज्ञ मैं, बजाय इस विधा को और संपूर्ण तथा सम्पन्न बनने के इस दिशा से विमुख हो , अपनी ऑफिस में अपनी इमेज, सैलरी, प्रोमोशन इत्यादि हेतु कार्याधिक्य की चादर ओढ़ सो गया। कालांतर में ज्ञान चक्षु खुले तो हिन्दी का प्रेम फ़िर से हिलोरे मारने लगा ( हालाँकि इस दौरान मैं केवल हिन्दी ब्लॉग से दूर हुआ था, हिन्दी प्रेम ह्रदय में यथास्थान था , किसको बनाये रखने के लिए न जाने कितने किताबें पढ़ डालीं।) अपने विदेश प्रवासों में मैं इस बात का विशेष ध्यान रखता के मेरे पास, हिन्दी का कुछ साहित्य सदैव उपलब्ध रहे। ये मेरे लिए मार्गदर्शक तथा स्ट्रेस - बस्टर का काम करते।
ऐसे ही एक दिन बैठे बैठे जब फ़िर से इन्टरनेट पर हिन्दी को ढूंढते ढूंढते पुनः हिन्दी ब्लॉग से सामना हुआ गया तो हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ। कल का शिशु आज किशोरावस्था में प्रवेश कर चुका था। मैं फूला न समां रहा था, मनो लाटरी लग गई हो। अब मैं इसे वाकई खजाना कह सकता था, जो न केवल सुरक्षित हाथों में है बल्कि दिन -ब- दिन बढ़ता भी जा रहा है, भारत में भ्रष्टाचार के सिवा ये कारनामा क्या कोई और कर सका???
शुभ हो!!

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